1. अश्वत्थामा
वो शिव के वरदान से जन्मा था. गुरु द्रोणाचार्य और मां कृपि का बेटा. पैदा हुआ तो गले से घोड़े की हिनहिनाहट जैसी आवाज़ गूंज गई इसलिए नाम अश्वत्थामा रखा गया. जन्म से माथे पर एक मणि जड़ी थी जो उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग सबसे निर्भय रखती थी. इस मणि के कारण उस पर किसी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं हो पाता था. इसी वजह से उसे कभी कोई नहीं हरा पाया. बचपन में तंगहाली थी घर में. उसके पीने को दूध तक नहीं था. पिता गाय मांगने एक राजा के दरबार गए तो उसने अपमानित करके निकाल दिया. बाल अश्वत्थामा ने ये देखा. ख़ैर, बाद में द्रोण कौरवों के गुरु बन गए. उन्होंने बेटे को धनुर्वेद के सब रहस्य सिखा दिए. अश्वत्थामा ने सारे अस्त्र सिद्ध कर लिए थे. वो भीष्म पितामह, परशुराम और अपने पिता द्रोण के बराबर का धनुर्धर हो गया था. अर्जुन और कर्ण जिन्हें बेस्ट माना जाता है वो भी उससे श्रेष्ठ नहीं थे. अश्वत्थामा को नारायणास्त्र का ज्ञान था. महाभारत में उसके और गुरु द्रोण के सिवा ये अस्त्र किसी के पास नहीं था. जब कौरवों और पांडवों की लड़ाई हुई तो पिता कि तरह वो भी कौरवों तरफ से लड़ा. युद्ध में उसने और उसके पिता ने पांडवों की सेना को बर्बाद कर दिया. उसने भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे अंजनपर्वा को मार दिया. पांडवों की अक्षौहिणी सेना को खत्म कर दिया. उसने देखते ही देखते द्रुपद, सुत सुरथ, शत्रुंजय, कुंतीभोज के 90 पुत्रों और बलानीक, जयाश्व, श्रुताह्य, हेममाली, पृषध्र और चंद्रसेन जैसे वीरों को मार दिया. युधिष्ठिर की सेना को भगा दिया. उसने इतनी बर्बादी की कि पांडवों के खेमे में आंतक व्याप्त हो गया. उसे रोकना ज़रूरी हो गया था नहीं तो हार तय थी. इतनी हालत खराब कर दी कि उसे और द्रोण को रोकने के लिए अनैतिक रास्ता अपनाया गया. द्रोणाचार्य को मारने के लिए अफवाह उड़ाई गई कि अश्वत्थामा मारा गया. असल में भीम ने अवंतिराज के हाथी अश्वत्थामा को मारा था. लेकिन फैलाई गई अफवाह द्रोण ने सुनी तो धक्क से रह गए. उन्होंने सच जानने के लिए युधिष्ठिर से पूछा क्योंकि वे धर्मराज कहलाते थे और कभी झूठ नहीं बोलते थे. युधिष्ठिर ने बोला – “अश्वत्थामा मारा गया, परन्तु हाथी.” लेकिन कृष्ण ने उसी समय शंखनाद कर दिया जिससे द्रोण आखिरी दो शब्द सुन नहीं पाए. उन्हें लगा कि उनका पुत्र मारा गया. वे आंखें बंद करके शोक में बैठ गए, सब शस्त्र त्याग दिए. वे शोक में निहत्थे बैठे थे कि द्रोपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका सिर काट दिया. इसके बाद पांडवों की युद्ध में जीत तय हो गई. लेकिन अश्वत्थामा के क्रोध ने तूफान का रूप ले लिया. उसके पिता को जिस तरह छल से मारा गया तो उसने भी युद्ध के सब नियम ताक पर रख दिए जबकि अश्वत्थामा ऐसा आदमी था जिसके असीम बल के साथ उसकी बुद्धि और शील की प्रशंसा भी लोग करते थे. भयंकर क्रोध और दुख में डूबे अश्वत्थामा ने नारायणास्त्र छोड़ा. इस अस्त्र के आगे जो झुकता नहीं, आत्मसमर्पण नहीं करता, उसकी मौत तय है. पांडवों की सेना ने घुटने टेक दिए. पांडव भी झुक गए और उनकी मौत नहीं हुई. अब उनको मारने के लिए अश्वत्थामा घोर काली रात में उनके शिविर में घुस गया. वहां पांडवों के पांच पुत्र सो रहे थे जिनको पांडव समझकर अश्वत्थामा ने उनके सिर काट दिए. धृष्टद्युम्न जाग गया और अश्वत्थामा ने उसे भी मार दिया. पांडवों के सोते बच्चों को मारने के इस काम की सबने निंदा की. अर्जुन बेटे की हत्या का बदला लेने गांडीव लेकर अश्वत्थामा के पीछे दौड़ा. डर से अश्वत्थामा ने उस पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया, जो सबसे विनाशकारी अस्त्र माना जाता है, जैसे आज का न्यूक्लियर बम. अर्जुन ने भी उसे रोकने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. अब तबाही होने लगी. इसे देखते हुए ऋषियों ने प्रार्थना की. अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा को अस्त्र छोड़ना आता था, वापस लेना नहीं इसलिए उसने अभिमन्यु की विधवा उत्तरा के गर्भ की तरफ उसे मोड़ दिया, ताकि पांडवों के वंश का नाश हो जाए. लेकिन कृष्ण ने उत्तरा और उसके गर्भ को बचा लिया. अब अश्वत्थामा को बंदी बनाकर लाया गया. ब्राह्मण और गुरुपुत्र होने की वजह से उसे मारना धर्म के खिलाफ होता है, अतः अर्जुन ने उसके केश काट दिए और मणि निकाल ली. मणि निकलने से उसकी सारी शक्ति चली गई. कृष्ण ने उसे श्राप दिया कि वो 6 हजार साल तक भटकता ही रहेगा. माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जिंदा है और भटक रहा है.
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